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Thursday, October 8, 2015

महंगाई पर गीत लिखें कि गज़ल-हिन्दी हास्य कविता(mahangai par geet likhe ki Gazal-Hindi Comdy Poem Hindi Hasya Kavita)

महंगाई पर  गीत लिखें कि गज़ल-हिन्दी हास्य कविता
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महंगाई पर गीत रचें
या निबंध लिखें
समझ में नहीं  आता।

दस बरस से
सामानों के महंगे
रिश्तों के सस्ते होने का
दर्द गाते रहे
कोई दवा नहीं मिली
समझ में नहीं आता।

महंगाई संग देशभक्ति-हिन्दी व्यंग्य कविता
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फिक्र हमें इसकी नहीं कि
दाल के बढ़ते दाम से
हमारी जेब कट जायेगी।

दीपकबापूचिन्ता यह है
रोटी के भारी कदम से
देशभक्ति कुचल जायेगी।
.......................
हल्की जेब वाले-हिन्दी हास्य कविता
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सामान जैसे जैसे
महंगे होते गये
रिश्ते अपनी कीमत
खोते गये।

कहें दीपकबापू
बाज़ार से निकले
साहूकार सीना तानकर
हल्की जेब थी जिनकी
वह रोते गये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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1 comment:

  1. जेब भरी हो तो अपने आप में वजन आ जाता है ।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति !

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