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Saturday, January 17, 2015

भारत का आम हिन्दू अध्यात्मिक रूप से ज्ञानी है-हिन्दी चिंत्तन लेख(bharat ka aam hindu adhyatmik roop se gyani hai-hindi thought article)



            अभी हाल ही में एक फिल्म से हमारे देश के धार्मिक संगठनों के लिये हास्यास्पद स्थिति का निर्माण किया।  इस फिल्म के विरोध अभियान चलाते समय में रणनीति तथा धरातल के सत्य का उनको ज्ञान नहीं था-यह बात साफ प्रतीत होती है।  एक सामान्य फिल्म जो तीन दिन में दम तोड़ देती एक निरर्थक विरोध अभियान ने उसने इतिहास के सबसे अधिक राजस्व कमाने वाली फिल्म बना दिया।  अगर हिन्दू धर्म की रक्षा का अभियान इन कथित लोगों को युद्ध स्तर पर चलाना है तो नीतियां भी व्यवहारिक अपनाना चाहिए। बिना रणनीति के कोई रण नहीं जीता जा सकता।  कम से कम उन्हें इस विषय में चाणक्य और विदुर नीति का अध्ययन तो अवश्य करना चाहिये।

      जब कोई सेनापति युद्ध के लिये जब निकलता है तो अपने अस्त्र शस्त्र के भंडार के साथ ही अपने सैनिकों के पराक्रम की व्यापकता और सीमा दोनों का ही अध्ययन कर लेता है।  इतना ही नहीं वह अपनी प्रजा की मानसिकता का भी विचार करता है।  हमारे भारत में कथित धर्म रक्षक हवा में ही शब्द बाण छोड़कर आत्ममुग्ध हो जाते हैं।  उन्हें न तो अपने समाज के संपूर्ण विचारों का ज्ञान है न यह जानते हैं कि आर्थिक, सामाजिक तथा पारिवारिक कारणों से वह मध्यम वर्ग कितने भारी तनाव में सांस ले रहा है जो धर्म के लिये बौद्धिकता का दान देता है। उसी तरह उस निम्न वर्ग के लिये अपने अस्तित्व का संघर्ष अत्यंत जटिल हो गया है जो धर्म की रक्षा के लिये अपना श्रम दान करता है।  पैसा दान करने वाला उच्च वर्ग भी अब अपने सात्विक लक्ष्य पाने की बजाय स्वार्थवश ही करता है।  सामाजिक तथा आर्थिक विषयों में तीनों वर्ग समन्वय स्थापित नहीं कर पा रहे-बल्कि कहीं कहीं वैमनस्य की भावना भी बढ़ रही है।

      ऐसे में फिल्म को लेकर कथित धर्म रक्षकों का अभियान न केवल टांय टांय फिस्स हुआ वरन् उससे फिल्म बनाने वालों को कमाई अधिक ही हो गयी।  उससे भी अधिक अब हंसी महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने की प्रेरणा देने पर उड़ रही है। जिस तरह महिलाओं को एक वस्तु मानकर यह बात कही गयी है वह अत्यंत अपमानजनक है।  इन लोगों का एक तरह से इसी तरह की मान्यता है कि महिलायें तो केवल बच्चे पैदा करने की मशीन है। इससे ज्यादा उसका महत्व नहीं है।

      चार बच्चे पैदा करने की प्रेरणा के लिये विचित्र बातें कही जा रही हैं।

      1-चार बच्चे इसलिये पैदा करो क्योंकि दूसरे समूह के लोग चालीस कर रहे हैं।

      2-एक बच्चा सीमा पर भेज दो। एक संतों को दे दो। दो अपने पास रख लो।

      निहायत ही हास्यास्पद तर्क हैं। पहली बात तो यह कि बच्चे से आशय इनका लड़के से ही है।  क्या यह मानते हैं कि इनकी राय पर चलने वाली औरते केवल लड़के को ही जन्म देंगी? क्या गर्भवती होने पर वह भ्रुण परीक्षण कराने जायेंगी।  क्या जब तक चार लड़के जन्म लें तब तक लड़कियों का जन्म उनको स्वीकार्य होगा? इससे तो बच्चों की संख्या आठ से दस तक जा सकती है।  आज स्वास्थ्य का जो स्तर है उसमें यह संभव नहीं लगता।  इस तरह तो कन्या भ्रुण हत्या को प्रोत्साहन मिलेगा?। हमें मालुम है कि देश की सामान्य महिलायें समझदार हैं और इस तरह के बयानवीरों की असलियत जानती हैं।  दूसरी बात यह कि सीमा पर जाने का मतलब सेना में भर्ती होने से ही है।  उस पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि देश में बेरोजगारी इतनी है कि किसी स्थान विशेष पर चार या पांच सौ सैनिकों की भर्ती के लिये शिविर लगता है तो वहां चालीस से पचास हजार लड़के भर्ती होने के लिये आ जाते हैं।  अनेक जगह तो भीड़ बेकाबू होने से उपद्रव भी हो चुके हैं।  पहले तो इस देश के युवकों को पूरी तरह भर्ती करा लें जो मौजूद हैं।  संतों को देने का सवाल एकदम अधार्मिक है।  कहीं भी किसी जगह इस तरह का संदेश नहीं है।

      हम यहां यह स्पष्ट कर दें कि भारत की विश्व में पहचान श्रीमद्भागवत गीता के कारण अधिक है।  उसमें जो अध्यात्मिक ज्ञान है वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पूर्व काल में था।  धार्मिक वस्त्र पहनकर स्वयं को विद्वान समझने वाले लोगों को अपने अध्यात्मिक ज्ञान के बारे में कितना पता है यह तो पता नहीं पर इतना तय है कि उनमें अपने समाज को लेकर आत्मविश्वास की भारी कमी है। वह शायद नहीं जानते कि भारत का आम हिन्दू अध्यात्मिक रूप से ज्ञानी है।

प्रस्तुत है इस पर एक कविता

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सच्चाई यह है कि
संख्या बल से
युद्ध नहीं जीते जाते।

पराक्रमियों का संरक्षण
समाज अगर न पा सके
शांति से दिन नहीं बीते जाते।

कहें दीपक बापू बुद्धि के वीरों पर
दो गुणा दो बराबर चार का सिद्धांत
असर नहीं करता
एक और ग्यारह की योजना से
करते किला फतह,
भीड़ बढ़ाकर नहीं चाहते कलह,
अपनी सोच से बढ़ते आगे
बांटते हैं वह सभी को प्रसन्नता
स्वयं भी सुख पीते जाते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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