समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Sunday, April 6, 2014

इस संसार में सच्चा समाज सेवक अधिक नहीं होते-भर्तृहरि नीति शतक के आधार पर चिंत्तन लेख (is sansar mein sachcha samaj sewak adhik nahin hote-bhartrihari neeti shatak ka adhar par chinntan lekh)



            आधुनिक प्रचार माध्यमों के आत्म विज्ञापन की सुविधा प्रदान की है जिसका वह लोग लाभ उठाते हैं जिनके पास बृहद आर्थिक संगठन हैं।  स्थिति यह है कि  आर्थिक शिखर पुरुष  छोड़ भलाई सारे काम करते हैं पर अपने प्रचार प्रबंधकों के माध्यम से अपनी छवि देवत्व की बना लेने में सफल हो जाते हैं।  इतना ही नहीं  अपने श्रमिकों, कर्मचारियों और पूरे समाज को शोषण करने के बावजूद ऐसे धनपति प्रचार माध्यमों से अपनी छवि इस तरह बनाते हैं जैसे कि वह अत्यंत विनम्र और दयालु हों।  इसके अलावा भी कला, साहित्य, पत्रकारिता, फिल्म तथा समाज के क्षेत्र में भी कथित रूप से नायकत्व वाली छवि धारण किये अनेक लोग आत्म विज्ञापन के जरिये ही अपना कार्य व्यापार चला रहे हैं। कुछ लोग तो ऐसे हैं जो स्वयं कभी परमार्थ नहीं कर पाते मगर सार्वजनिक जीवन में सक्रिय अन्य लोगों की निंदा कर यह प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं कि वह स्वयं ही श्रेष्ठ है। इतना ही धार्मिक क्षेत्र में भी अब विज्ञापन के जरिये कथित सिद्ध सामग्री बेचने के ऐसे प्रयास हो रहे हैं जिसे देखकर अध्यात्मिक ज्ञानियों की आंखें फटी रह जाती है।
भर्तृहरि नीति शातक में कहा गया है कि

----------------------------------

मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णास्त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः|
परगुणपनमाणून्पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृवि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः||

     हिंदी में भावार्थ- जिनकी देह मन और वचन की शुद्धता और पुण्य के अमृत से परिपूर्ण है और वह परोपकार से सभी का हृदय जीत लेते हैं। वह तो दूसरों को गुणों को बड़ा मानते हुए प्रसन्न होते हैं पर ऐसे सज्जन इस संसार में कितने हैं?

     वैसी देखा जाए तो दूसरों के दोष गिनाते हुए अपने गुणों का बखान तथा दिखाने के लिये समाज के कल्याण में जुटे कथित लोगों की कमी नहीं है। आत्म विज्ञापन से प्रचार माध्यम भरे पड़े हैं। अपने अंदर गुणों का विकास कर सच्चे हृदय से समाज सेवा करने वालों का तो कहीं अस्तित्व हीं दिखाई नहीं देता। अपनी लकीर को दूसरे की लकीर से बड़ा करने वाले बुद्धिमान अब कहां हैं। यहां तो सभी जगह अपनी थूक से दूसरे की लकीर मिटाने वाले हो गये हैं। ऐसे लोगों की सोच यह नहीं है कि वह समाज कल्याण के लिये कार्य कैसे करें बल्कि यह है कि वह किस तरह समाज में दयालू और उदार व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हों। प्रचार करने में जुटे लोग, गरीबों और मजबूरों के लिये तमाम तरह के आयोजन करते हैं पर वह उनका दिखावा होता है। मैंने यह अच्छा काम कियाया मैंने उसको दान दियाजैसे वाक्य लोग स्वयं ही बताते हैं क्योंकि उनके इस अच्छे काम को किसी ने देखा ही नहीं होता। देखेगा भी कौन, उन्होंने किया ही कहां होता है?
      इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो परोपकार और दया काम चुपचाप करते हैं पर किसी से कहते नहीं। हालांकि उनकी संख्या बहुत नगण्य है पर सच तो यह है कि संसार के सभी सभ्य समाज उनके त्याग और बलिदान के पुण्य से चल रहे हैं नकली दयालू लोग तो केवल अपना प्रचार करते हैं। आत्म प्रचार में लगे लोगों को अपने छवि बनाने के प्रयासों से ही समय नहीं मिलता तब वह समाज से कैसे कर सकते हैं?
--------------------------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं