समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Tuesday, May 7, 2013

संत कबीर दास दर्शन-जीभ को विष के कुऐं में न फसायें (sant kabir darshan-jeebh ko swad ke kuen mein na fasayen



       पशु पक्षियों से अधिक बुद्धिमान होते हुए भी मनुष्य अपने जीवन में अपनी स्वार्थपूर्ति से अधिक कुछ नहीं  कर पाता।  इसका कारण यह है कि वह अपनी पूरी जिंदगी जीभ के स्वाद में पड़ा रहता है।  आजकल तो हालत अधिक ही मुश्किल हो गये हैं जब अप्राकृतिक भोजन का सेवन बढता ही जा रहा है।  लोगा बाज़ार की वस्तुऐं यह बिना जाने सेवन करते हैं कि उनके निर्माण या उत्पादन में कितनी सावधानी बरती गयी है।  बाज़ार में खुले में वस्तुऐं बन रही हैं।  अनेक जगह गंदी नालियों के निकट चाट की दुकानें खुली मिलेंगी। वहां रखी वस्तुओं पर आसपास से गुजर रहे वाहनों की धूल आ जाती है।  प्रदूषित वातावरण में घंटों रखी वस्तुओं को लोग स्वाद के कारण ग्रहण करते हैं।  अनेक चिकित्सक आज के दौर में बीमारियों का प्रेरक तत्व बाज़ार की वस्तुओं को भी मानते है।  कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर आज के लोग बाज़ार में निर्मित वस्तुओं का सेवन न करें तो वह पचास फीसदी से अधिक बीमारियों से बच सकते हैं।
संत कबीर कहते हैं कि
--------------
खट्टा मीठा चरपराद्व जिभ्या सब रस लेय।
चोरों कुतिया मिल गई, पहरा किसका होय।।
          हिन्दी में भावार्थ-जीभ तो मीठे, खट्टे तथा चटपटे का रस लेती है, इसी कारण चाहे जब फिसल जाती है। ठीक वैसे ही जैसे कुतिया जब चोरों से मिल जाये तो उसका पहरा घर की सुरक्षा समाप्त कर देता है।
जीभ स्वाद के कूप में, जहां हलाहल काम।
अंग अविद्या ऊपजै, जाय हिये ते नाम।।
        हिन्दी में भावार्थ-जब तक जीभ स्वाद के गहरे कुऐं फंसी हुई है तब विषय रूपी विष का ही सेवन करेगी।  तब उसके अंग अंग में अविद्या रहेगी और परमात्मा का नाम या भक्ति करना उसक लिये संभव नहीं है।
       अभी हाल ही में टीवी चैनलों तथा प्रचार माध्यमों में अनेक बड़ी कंपनियों केा खाद्य तथा पेय पदार्थों के अशुद्ध तथा विकारों को उत्पन्न होने की बात सामने आयी थी।  दरअसल आधुनिक प्रचार माध्यमों ने स्वयं ही कथित रूप से कंपनियों  के विज्ञापनों के के कारण उनके उनके सामने घुटने टेक दिये हैं। यही कारण है कि आम लोग बड़ी कंपनियों के खाद्य तथा पेय पदार्थों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।  फिर इन कंपनियों के उत्पादों का स्वाद कुछ ऐसा है कि लोग उनका उपयोग धड़ल्ले से इस आशा के साथ करते हैं कि उनके उत्पादन में सावधानी बरती गयी होगी।
    इसी विश्वास का नतीजा है कि अब बच्चों तथा युवाओं में भी वह बीमारियां बढ़ रही हैं जो कभी बड़ी आयु वाले लोगों में स्वाभाविक रूप से दिखाई देती थीं। सच बात तो यह है कि अब  घर में गृहणियों के हाथ से निर्मित वस्तुओं का सेवन करना ही स्वास्थ्य के लिये श्रेयस्कर है।  एक तो उनके हाथ निर्मित खाद्य तथा पेय पदार्थ ताजा होते हैं दूसरे शुद्ध होना उनकी एक खास पहचान है।  जहां तक हो सके घर के सभी सदस्यों को भी इस बात की प्रेरणा देते रहना चाहिये कि घर में निर्मित वस्तुओं का ही सेवन करें।
         

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं