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Sunday, November 4, 2012

पतंजलि योग विज्ञान-वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता से युक्त सम्प्रज्ञात योग (patanjaili yoga vigyan or sicence)

       भारतीय योग साहित्य की चर्चा चारों तरफ है पर मुख्य रूप से आसन तथा प्राणायाम जैसे दो भागों पर ही विद्वान लोग अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।  कुछ लोगों ने समय समय पर  यम, नियम और ध्यान पर भी अपनी राय रखी है पर पतंजलि योग साहित्य के बारे सही ज्ञान बहुत कम लोगों को हैं।  यह सत्य है कि योग से मन को बुद्धि से और बुद्धि को आत्मा से जोड़ कर परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव अपने अंदर करना सहज हो जाता है पर ऐसा करने के लिये पतंजलि योग के सूत्रों का ज्ञान होना आवश्यक है।  इसमें योग के अनेक रूपों का वर्णन है। जब मनुष्य योग के बाह्य रूप से अवगत होकर अपनी साधना करता है तब उसके अंदर अनेक प्रकार की आंतरिक सिद्धियां स्वतः आती है जो कि योग साधना का चरम स्तर होता है।          
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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  वितर्कविचारान्नदास्मितानुगमात्सप्रज्ञातः।।
हिन्दी में भावार्थ-वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता के संबंध से युक्त सम्प्रज्ञातयोग है।
तत्परं पुरुषख्यांतेर्गुणवैतृष्ण्यम्।।
हिन्दी में भावार्थ-पुरुष के ज्ञान से प्रकृति के गुणों में तृष्णा का सर्वथा अभाव हो जाता है। यह परम वैराग्य है।
    मुख्य बात यह है कि ज्ञान साधक जब इस संसार की त्रिगुणमयी माया से अवगत हो जाता है तब वह बाहरी विषयों में निर्लिप्त और निष्काम भाव से कर्म करता है। अपनी दैहिक क्रियाओं से होने वाली उपलब्धियों को फल नहीं बल्कि कर्म का ही विस्तार मानता है।  उसे यह आभास हो जाता है कि शारीरिक और बौद्धिक श्रम से उसे मिला धन अंततः उसके पास न रहकर दूसरी जगह व्यय होना है।  उसने जो मकान बनाये या वाहन खरीद एक दिन वह उसका साथ छोड़ देंगे।  इतना ही नहीं जिस देह को धारण किये है एक दिन उससे भी वह छोड़ जायेगा।  तब उसमें वैराग्य भाव पैदा होता है जो उसमें जीवन के प्रति आत्मविश्वास पैदा करने के साथ ही परमात्मा की पहचान भी कराता है।  तब आदमी सांसरिक विषयों से दैहिक रूप से प्रथक तो नहीं होता पर आत्मिक रूप से उसका लक्ष्य नहीं रह जाता। वह एक दृष्टा की तरह अपने जीवन को देखता हुआ हर क्षण का आनंद लेता है।  वह ध्यान, धारणा तथा समाधि जैसी विद्याओं में पारंगत होकर कर्मयोगी बन जाता है। यही भारतीय योग साधना का चरम स्तर है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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