समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Wednesday, April 14, 2010

कबीर के दोहे-दुष्टों कि निंदा कि बजाय साधुओं के प्रशंसा में वक्त बिताएं (kabir ke dohe-ninda aur prashansa)

काहू को नहिं निन्दिये, चाहै जैसा होय।
फिर फिर ताको बन्दिये, साधु लच्छ है सोय।।
संत कबीरदास का कहना है कि चाहे व्यक्ति अच्छा हो या बुरा उसकी निंदा न करिये। इसमें समय नष्ट करने की बजाय उस आदमी की बार बार प्रशंसा करिये जिसके लक्षण साधुओं की तरह हों।
सातो सागर मैं फिर, जम्बुदीप दै पीठ।
परनिंदा नाहीं करै, सो कोय बिरला दीठ।।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि मैं सारा संसार फिरा पर ऐसा कोई नहीं मिला जो परनिंदा न करता हो। ऐसा तो कोई विरला ही होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य का स्वभाव है परनिंदा करना। सच बात तो यह है कि हर मनुष्य अपने घर संसार के कामों में व्यस्त रहता है पर यह चाहता है कि लोग उसे भला आदमी कहें। ऐसा सम्मान तभी प्राप्त हो सकता है जब अपने जीवन से समय निकालकर कोई आदमी दूसरों का काम करे और सुपात्र को दान देने के साथ ही असहाय की सहायत के लिये तत्पर रहे। यह काम विरले ही लोग करते हैं और सामान्य मनुष्य उनको फालतु या बेकार कहकर उनकी अनदेखी करते हैं अलबत्ता उनको मिलने वाली इज्जत वह भी पाना चाहते हैं। ऐसे में होता यह है कि लोग आत्मप्रचार करते हुए दूसरों की निंदा करते हैं। अपनी लकीर खींचने की बजाय थूक से दूसरे की लकीर को छोटा करते हैं। दुनियां में ऐसे लोग की बहुतायत है पर संसार में भले लोग भी कम नहीं है। सच बात तो यह है ऐसे ही परोपकारी, दानी, ज्ञान और कोमल स्वभाव लोगों की वजह से यह संसार भले लोगों की भलाई के कारण चल रहा है। सामान्य मनुष्य तो केवल अपना घर ही चला लें बहुत है।
अधिकतर मनुष्य अपने काम में व्यस्त हैं पर सम्मान पाने का मोह किसे नहीं है। कहीं भी किसी के सामने बैठ जाईये वह आत्मप्रवंचना करता है और उससे भी उसका मन न भरे तो किसी दूसरे की निंदा करने लगता है। कबीरदास जी के कथनों पर विचार करें तो यह अनुभव होगा कि हम ऐसी गल्तियां स्वयं ही करते हैं। अतः अच्छा यही है कि खाली समय में कोई परोपकार करें या अध्ययन एवं भक्ति के द्वारा अपना मन शुद्ध करें। दूसरों की निंदा से कुछ हासिल नहीं होने वाला। हां, अगर कोई भला काम करता है तो उसकी प्रशंसा करें। एक बार नहीं बार बार करें। संभव है उसके गुण अपने अंदर भी आ जायें। याद रखिये दूसरे के अवगुणों की चर्चा करते हुए वह हमारे अंदर भी आ जाते हैं।  शायद इसलिए ही कहा जाता है कि बुरा मत कहो,बुरा मत देखो और बुरा मत सुनो।  साथ ही यह भी कहा जाता है कि सबसे अच्छा बर्ताव करो पता नहीं कब किसकी जरूरत पड़ जाए।
---------------------------
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं